श्रीमद् भागवत कथा में गूंजे श्रीकृष्ण जन्मोत्सव के जयकारे

कालपी। अहंकार ही मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है, क्योंकि यह बुद्धि और ज्ञान का हरण कर लेता है। व्यक्ति को कभी अहंकार नहीं करना चाहिए। उक्त बातें हाइवे स्थित प्राचीन दुर्गा मंदिर प्रांगण में चल रही सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के चौथे दिन शुक्रवार को कथा व्यास आचार्य गौरव कृष्ण शुक्ला ने कहीं। इस दौरान उन्होंने श्रीकृष्ण जन्मोत्सव का प्रसंग सुनाया, जिसे सुन श्रद्धालु भाव-विभोर हो उठे।
भगवान कृष्ण के जन्म पर गूंजे जयकारे
कथा व्यास आचार्य गौरव कृष्ण शुक्ला ने कहा कि जब अत्याचारी कंस के पापों से धरती डोलने लगी, तब भगवान को अवतरित होना पड़ा। सात संतानों के बाद जब देवकी गर्भवती हुई, तो उसे अपनी संतान की मृत्यु का भय सताने लगा। लेकिन जैसे ही भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, जेल के सभी बंधन स्वतः टूट गए और भगवान श्रीकृष्ण सुरक्षित गोकुल पहुंच गए। उन्होंने बताया कि जब-जब धरती पर धर्म की हानि होती है, तब-तब भगवान धरती पर अवतरित होते हैं।
जैसे ही कथा के दौरान भगवान श्रीकृष्ण का जन्म प्रसंग आया, पूरा पंडाल “नंद के आनंद भयो, जय कन्हैयालाल की” भजन से गूंज उठा। श्रद्धालु भक्ति में लीन होकर झूम उठे। कथा स्थल पर उपस्थित भक्तों ने एक-दूसरे को श्रीकृष्ण जन्म की बधाई दी, मिठाइयाँ और खिलौने बाँटे गए। महिलाओं ने भजन प्रस्तुत कर भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की खुशियाँ मनाईं।
श्रद्धालुओं की उमड़ी भीड़, भव्य भजन संध्या का आयोजन
श्रीकृष्ण जन्मोत्सव के अवसर पर विशेष भजन संध्या का आयोजन किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में महिलाओं ने भजन प्रस्तुत किए। श्रद्धालुओं ने भक्ति भाव से नृत्य कर श्रीकृष्ण जन्म का उत्सव मनाया। इस मौके पर प्रमुख रूप से कुन्नू महाराज, धरम सिंह यादव, प्रेम पाल मास्टर, राजेन्द्र पाल, हरीकृष्ण शुक्ला, जानू महाराज, बाबा, राना आदि श्रद्धालु शामिल रहे।
भव्य आरती व प्रसाद वितरण
कथा समापन के बाद परीक्षित सोवरन निषाद ने सभी श्रद्धालुओं का आभार व्यक्त किया। दीपू द्विवेदी ने श्रीकृष्ण जन्मोत्सव की आरती कराई, जिसके बाद प्रसाद वितरण किया गया। इस पावन अवसर पर भारी संख्या में श्रद्धालुओं ने आकर भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का उत्सव मनाया और पुण्य लाभ अर्जित किया।
ब्यूरो रिपोर्ट डेस्क